विधेयक पर फैसले में देरी नहीं कर सकेंगे राष्ट्रपति और राज्यपाल : सुप्रीम कोर्ट का निर्देश, केरल के राज्यपाल की तीखी प्रतिक्रिया
Published by धर्मेंद्र शर्मा

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अपने एक अहम फैसले में राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर संसद द्वारा पारित विधेयकों पर निर्णय लेने की सलाह दी है। कोर्ट ने कहा कि यदि तय समयसीमा में फैसला नहीं लिया जाता तो राष्ट्रपति को इसकी उचित वजह बतानी होगी। इस फैसले के साथ ही राज्यपालों के लिए भी स्पष्ट संदेश दिया गया है कि वे अनिश्चितकाल तक विधेयकों को लंबित नहीं रख सकते।
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्देश पर केरल के राज्यपाल राजेंद्र आर्लेकर ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा, “अगर संविधान संशोधन का काम भी सुप्रीम कोर्ट करेगा, तो फिर संसद और विधानसभाओं का क्या महत्व रह जाएगा?” राज्यपाल के इस बयान ने राजनीतिक विवाद को जन्म दे दिया है।
राज्यपाल के बयान पर कांग्रेस और सीपीआईएम का हमला
राज्यपाल आर्लेकर के बयान के बाद कांग्रेस और सत्ताधारी पार्टी सीपीआईएम ने उनकी कड़ी आलोचना की है। कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कोझिकोड में एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि राज्यपाल का बयान दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने आरोप लगाया कि राज्यपाल सुप्रीम कोर्ट की आलोचना इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उन्हें डर है कि अब भाजपा का असली एजेंडा उजागर हो जाएगा।
सीपीआईएम के महासचिव एमए बेबी ने भी राज्यपाल के बयान को अवांछित बताते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला सभी संवैधानिक पदों पर लागू होता है, जिसमें राष्ट्रपति भी शामिल हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि जब राष्ट्रपति संसद के विधेयकों में देरी नहीं कर सकते, तो राज्यपालों को यह विशेष अधिकार कैसे मिल सकता है?
‘सुप्रीम कोर्ट का सम्मान होना चाहिए’
एमए बेबी ने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सभी को सम्मान करना चाहिए, खासकर संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को। केरल के राज्यपाल द्वारा कोर्ट के फैसले की आलोचना करना न केवल गलत है, बल्कि यह संवैधानिक मर्यादाओं के खिलाफ भी है।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सुचारु बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। अब राज्यों में विधेयकों को लेकर राज्यपालों की भूमिका पर भी नई बहस शुरू हो गई है।