वकालत और नेतृत्व के क्षेत्र में, ऐसे लोग हैं जिनके प्रयास चुपचाप गूंजते हैं, और दुनिया पर एक अमिट छाप छोड़ते हैं। जमुना टुडू, जिन्हें प्यार से लेडी टार्ज़न के नाम से जाना जाता है, ऐसी ही एक गुमनाम हीरो हैं। हमारे पर्यावरण की रक्षा के लिए उनकी अटूट प्रतिबद्धता के लिए उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रतिष्ठित उपाधि “लेडी टार्ज़न” से सम्मानित किया गया है। उनकी उपलब्धियों का शिखर 2019 में आया जब जमुना टुडू को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक, प्रतिष्ठित पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वही लेडी टार्ज़न से नेशन न्यूज 18 डिजिटल टीम की संवाददाता चाहत कुमारी ने खास बातचीत की..
सवाल 1: जमुना जी आप एक पर्यावरण एक्टिविस्ट हैं, पर्यावरण को बचाने का काम करती हैं यह यात्रा कैसी रही ?
जवाब: देखिए यह यात्रा इतनी आसान नहीं थी, जितना हम सोचते और सुनते हैं उससे कई गुना संघर्षशील रास्ता था। खासकर एक महिला होकर और झारखंड जैसे इलाके में पर्यावरण को बचाने का काम करना मुश्किल था। जान को खतरा था लेकिन जो ठान लिया है तो करना है ही, इसलिए कर गई।
सवाल 2: आपने महिला होने की बात कही है तो घर, परिवार और पति से कितना साथ मिला ?
जवाब: आज में पद्मश्री तक पहुंच पाई हूं तो अपने पति और सास-ससुर के सहयोग से ही अगर वो मेरा साथ नहीं देते तो मैं इस यात्रा को तय नहीं कर पाती और हो सकता है कि मैं झारखंड की लेडी टार्जन के नाम से नहीं जानती जाती। एक औरत होना अच्छी बात है लेकिन घर परिवार का सहयोग मिलना भी ज़रूरी है।
सवाल 3: आप उस समय से आती हैं जहां महिलाओं को चौखट से बाहर नहीं आने दिया जाता था और ये आज भी हर राज्य में लगभग ऐसा है । उस समय अपने आप को आगे लाने का ख्याल कहां से आया ?
जवाब: मुझे पेड़ पौधों से बचपन से लगाओ था जब मैं अपने ससुराल में देखती थी कि जंगल को काटा जा रहा है मैं बहुत दुखी होती थी। मै सोचती थी कोई आवाज़ क्यों नहीं उठाता फिर मै ही चौखट से बाहर आकर जंगल को बचाने के कार्य में लग गई। आपने सही कहा महिलाओं को उस जमाने में भी बाहर नहीं निकलने दिया जाता था, लेकिन जो महिलाएं सामने नहीं आती है वो आए, आज का समय कुछ और है आज की लड़ाई वो नहीं लड़ेंगी तो शायद ये सवाल हमेशा चकते रहेंगे।
सवाल 4: आपके शरीर ख़ासकर गर्दन पर कटने के निशान है क्या ये उस संघर्ष की लड़ाई के निशान हैं ?
जवाब: जी बिल्कुल एक बार जब मै जंगल आन्दोल से घर वापस आ रही थी तब मुझे मारने की कोशिश की गई थी और मुझे लहूलुहान कर रास्ते पर फेंक दिया गया था । ये निशान को जब भी देखती हु मेरे आंखों में आंसू के सिवा कुछ नहीं होता है। मै रो पड़ती हूं।
सवाल 5: अब जमुना जी के काफिला में कितना लोग जुड़े इस सोच को आगे बढ़ाने के लिए ?
जवाब: काफिला तो नहीं लेकिन लोगों को जागरूक करने के लिए मैंने समिति बनाना शुरू किया और इसकी शुरुआत झारखंड के सिंहभूम जिला से की अभी तक हम 800-900 लोगों की समिति है। जो इस अभियान में शामिल हैं और जंगल को बचाने में जुड़ गए हैं।
सवाल 6: आप राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जी से कब मिली और उनसे पहचान कैसे हुई ?
जवाब: देखिए द्रौपदी मुर्मू दीदी उस समय झारखंड की राज्यपाल थी। दीदी को मैंने अपने एक कार्यक्रम में बुलाया थी। तब मैं दीदी को बताया कि मैं जंगल बचाने का कार्य करती हूं तब दीदी ने मेरे काम की सराहना की तभी उन्होंने एक चिट्ठी राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी को लिखी की आदिवासी समाज की महिला ऐसा काम करती है इसको सम्मान मिला चाहिए। उसके बाद मुझे पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
सवाल 7: अब जमुना जी क्या सोचती हैं आगे क्या करना चाहती हैं?
जवाब: अभी जंगल को बचाने के लिए जो करना पड़े मै करूंगी, जंगल हम आदिवासियों की मां-बहन है जिसकी रक्षा करना हमारा काम है। आज एक प्रेरित होगा कल दो होंगे आख़िर में मेरा प्रयास ज़रूर सरल होगा।