वृक्ष पर चाहे पका हुआ फल हो या कच्चा, धरती समभाव से उसे अपनी ओर खींचती है,* इस समभाव के कारण उसके *इस बल को गुरुत्वाकर्षण कहा जाता है-*
*सदगुरु व्यक्ति धरती के गुरुत्वाकर्षण बल के जैसे होते हैं*
*सूर्य अपना प्रकाश देते समय यह नहीं सोचता की व्यक्ति पात्र है या कुपात्र, पुण्यात्मा है या पापात्मा वह अपने सम्पर्क में आने वालों को समान रूप से ऊष्मा और प्रकाश प्रदान करता है,* *सदगुरु व्यक्ति सूर्य की भाँति होते हैं। *
— अतः हम सभी को सदगुरुओं जैसे निस्वार्थ व्यक्तियों का सानिध्य करना चाहिए।
*उनकी बातों को मनन और स्मरण रखना चाहिए।*
*जिस से आपका जीवन प्रकाश की भाँति उज्ज्वल होगा।*