ऑस्कर अवार्डः नॉमिनेशन से पुरस्कार जीतने तक का लंबा और खर्चीला रास्ता, क्या है पूरी प्रक्रिया?
ऑस्कर को दुनिया के ‘सर्वश्रेष्ठ’ फ़िल्म पुरस्कार का सम्मान प्राप्त है.
हर साल दिए जाने वाले इस अवार्ड में अब तक कोई भी भारतीय फ़िल्म सर्वश्रेष्ठ सिनेमा का खिताब नहीं जीत सकी है.
इस साल फ़िल्म आरआरआर के गीत ‘नाटू नाटू’ ने ‘गोल्डन ग्लोब अवार्ड’ जीता और ऑस्कर के लिए इसे नॉमिनेशन मिला है.
वहीं चर्चित गुजराती फ़िल्म ‘छेल्लो शो’ उर्फ़ ‘आखिरी फ़िल्म शो’ को भारत की तरफ़ से ऑस्कर के लिए ऑफिशियल एंट्री दी गई थी.
आइए जानते हैं ऑस्कर पुरस्कारों के नॉमिनेशन से लेकर इसकी कैंपेनिंग और लॉबीइंग की क्या है पूरी प्रक्रिया और कैसे फ़िल्में ऑस्कर के पोडियम तक पहुंचती हैं?
भारतीय फ़िल्में जो ऑस्कर के लिए नामांकित हुईं
वरिष्ठ पत्रकार और फ़िल्म समीक्षक रामचंद्रन श्रीनिवासन कहते हैं कि भारतीय फ़िल्मों का ‘ऑस्कर अवार्ड’ का सफ़र कतई आसान नहीं होता.
वे कहते हैं, “सबसे पहले तो हमें ये जानने की ज़रूरत है कि ऑस्कर नॉमिनेशन मे टॉप फाइव तक पहुंचने में अब तक भारत की केवल तीन फ़िल्में ही कामयाब रही हैं. पहली ‘मदर इंडिया’ थी जो 1957 में रिलीज़ हुई थी. इसके निर्देशक महबूब ख़ान थे. वहीं दूसरी फ़िल्म थी मीरा नायर की ‘सलाम बॉम्बे’ और तीसरी थी आशुतोष गोवारिकर की लगान- वन्स अपॉन अ टाइम इन इंडिया.”
श्रीनिवासन कहते हैं, “अगर आप महबूब ख़ान की मदर इंडिया की बात करें तो वह केवल एक वोट से यह अवार्ड पाने से चूक गई थी. इन फ़िल्मों के नाम में भारत का ज़िक्र है. ये तीनों देश की संस्कृति, सभ्यता और यहाँ के रहन सहन को दर्शाती हैं.”
आमिर ने लिया था विदेशी पीआर एजेंसी का सहारा
ऑस्कर में जो फ़िल्में भेजी जाती हैं उनका चयन फ़िल्म फेडरेशन ऑफ़ इंडिया करती है.
रामचंद्रन श्रीनिवासन बताते हैं, “1940 में महबूब ख़ान ने फ़िल्म ‘औरत’ बनाई जो फ़्लॉप रही और 17 साल बाद इसी की रीमेक थी ‘मदर इंडिया’. इसमें कई बदलाव किए गए थे.”
वे कहते हैं, “सलाम बॉम्बे मीरा नायर ने बनाई जो एक एनआरआई थीं, जिनका मुंबई को देखने का नज़रिया अलग था. मुंबई को उन्होंने एक विदेशी की तरह देखा और शायद यही कारण था कि ये फ़िल्म लॉबी करके वहां तक पहुंच पाई. उससे अधिक लॉबी आमिर ख़ान ने की थी जिन्होंने लगान के लिए एक विदेशी पीआर एजेंसी को रखा था.”
श्रीनिवासन कहते हैं, “आमिर ने बहुत से वोटिंग मेंबर्स को इस फ़िल्म को दिखाने की कोशिश की लेकिन वे ज़्यादा लोगों को इसे नहीं दिखा पाए. तब क़रीब छह हज़ार वोटिंग मेंबर थे. कम लोगों के इस फ़िल्म को देखने की वजह से ‘लगान’ ऑस्कर नहीं जीत सकी.”
छह महीने लंबी प्रक्रिया
ऑस्कर के लिए नॉमिनेशन से लेकर इसे जीतने तक की प्रक्रिया क्या है?
इस पर रामचंद्रन श्रीनिवासन कहते हैं, “नॉमिनेशन तो प्रोसेस का हिस्सा है. फ़िल्म के चयन से लेकर इसके अवार्ड पाने की प्रक्रिया क़रीब छह महीने की होती है. इस बीच इसे बनाने वाले पुरज़ोर कोशिश करते हैं कि उनकी फ़िल्म को ये पुरस्कार मिल जाए.”
दुनियाभर में ऑस्कर अवॉर्ड देने वाली संस्था के 10 हज़ार से ज़्यादा मेंबर होते हैं. इनमें से अधिकतर अमेरिका के होते हैं. वहीं भारत से भी क़रीब 40 लोग इसके सदस्य होते हैं.
ये सदस्य एडिटिंग, साउंड, वीएफ़एक्स जैसी अलग-अलग 17 कैटेगरी से जुड़े होते हैं. इनमें से 16 कैटेगरी आर्ट से जुड़ी होती है और 17वीं नॉन टेक्निकल होती है.
श्रीनिवासन कहते हैं, “हर साल इन कैटेगरी से जुड़े सदस्य उन 300 से ज़्यादा फ़िल्मों के लिए वोटिंग करते हैं जो ऑस्कर की रेस में शामिल होती हैं. फिर वोटिंग के आधार पर 10 अलग-अलग कैटेगरी में फ़िल्मों का चयन होता है. फ़िल्में शॉर्ट लिस्ट की जाती हैं और इन पर फिर वोटिंग होती है और आखिर में नामांकित फ़िल्मों की अंतिम लिस्ट तैयार होती है.”
जिन लोगों ने फ़िल्म नहीं देखी वो वोट नहीं कर सकते
रामचंद्रन श्रीनिवासन कहते हैं इस बार ऑस्कर अवार्ड के लिए दस हज़ार मेंबर हैं.
वे बताते हैं, “आपने जिन लोगों को फ़िल्में दिखाई हैं वो ही इसके लिए वोट कर सकते हैं, जिन्होंने फ़िल्में नहीं देखी हैं वो वोट नहीं कर सकते. ये अवार्ड जीतने के लिए सबसे पहले तो आपको अपनी फ़िल्में अधिक से अधिक सदस्यों को दिखानी होती है. फिर उन्हें ये लगना चाहिए कि हां वो इसके लिए वोट कर सकते हैं.”
श्रीनिवासन कहते हैं कि अकेडमी के सदस्य चाहे वीएफ़एक्स, टेक्निशियंस या फिर एक्टर-एक्ट्रेस और स्क्रिप्ट राइटर्स हों, सभी को पहले अपनी फ़िल्म दिखानी पड़ती है. लिहाजा एक पीआर एजेंसी हायर की जाती है जो आपकी फ़िल्म का पूरा दारोमदार आगे लेकर बढ़ती है.
श्रीनिवासन ये भी बताते हैं, “अपनी फ़िल्म दिखाने के लिए उन्हें ये बताना पड़ता है कि आप कौन हैं? उन्हें पूरा समय देना पड़ता है. ब्रेकफास्ट, लंच साथ करना पड़ता है. अपनी फ़िल्म की मार्केटिंग में किसी तरह की कोई चूक नहीं होने देने की कोशिश रहती है.”
वे कहते हैं कि बात अगर फ़िल्म ‘आरआरआर’ की करें तो ‘इन सब प्रक्रिया में इसके क़रीब 50 करोड़ रुपये लग चुके हैं और आगे भी लगेंगे.’
स्क्रीनिंग के लिए ज़रूरी है बड़ा बजट
इस पूरी पीआर प्रक्रिया में आपको टाइम और पैसे दोनों लगाने पड़ते हैं. इस साल ये सिलसिला ऑस्कर पुरस्कारों की घोषणा से एक दिन पहले तक यानी 12 मार्च तक चलेगा.
श्रीनिवासन कहते हैं, “इसका पूरा खर्च फ़िल्म के निर्माता करते हैं और ये कई बड़ी फ़िल्मों के बजट के जैसा बड़ा ही होता है. आपको अपनी फ़िल्म को लगातार न्यूज़ में बना कर रखना होता है. आज के दौर में सोशल मीडिया के लिए भी बजट रखा जाता है जहां हर दिन इसके ज़रिए पोस्ट किए जाते हैं. ये फ़िल्म लगातार ख़बरों में बनी रहे इसके लिए सभी प्रयास किए जाते हैं.”
वे कहते हैं, “आपने हाल ही में देखा होगा कि जेम्स कैमरून राजामौली की तारीफ़ कर रहे थे. फिर वे उनसे मुलाक़ात वाले वीडियो को अपने सोशल मीडिया के पन्ने पर डालते हैं. तो ये सब प्रोसेस है अपनी फ़िल्म को अधिक से अधिक लोगों को बीच पेश करने का.”
ऑस्कर का मुश्किल रास्ता
श्रीनिवासन बताते हैं कि हॉलीवुड फ़िल्मों के लिए यह प्रक्रिया उतनी मुश्किल नहीं होती है. जो फ़िल्में अमेरिका में बहुत कामयाब हो जाती हैं या फ़िल्म फेस्टिवल में अवार्ड जीत जाती हैं वो ऑस्कर के सदस्यों की नज़र में आ जाती हैं. लिहाजा उनके इस अवार्ड को जीतने का मौक़ा बढ़ जाता है लेकिन जो फ़िल्में चर्चा में नहीं होतीं उन्हें अपना प्रमोशन कैंपेन शुरू करना पड़ता है. फिर उन्हें भी अकेडमी के अधिक-से-अधिक सदस्यों तक पहुंचना पड़ता है.
वे कहते हैं कि इस पूरी प्रक्रिया पर एक बड़ी टीम के साथ योजनाबद्ध तरीक़े से काम करना पड़ता है. पीआर स्ट्रेटजी बनानी पड़ती है. आप कितने लोगों को थियेटर तक ले कर आए, कितने लोगों को अपनी फ़िल्म दिखा पाए और फिर कितने लोगों ने आपकी फ़िल्म के लिए वोट किया. कितने लोगों ने आपकी फ़िल्म की सराहना की. सराहना को सुनकर कितने अन्य सदस्य आपकी फ़िल्म देखने के लिए प्रोत्साहित हुए इन सब का पूरा ध्यान रखना होता है.
भारत की ओर से फ़िल्म ‘आरआरआर’ के ‘नाटू-नाटू’ गीत और ‘छेल्लो शो’ के अलावा डॉक्युमेंट्री कैटेगरी में शोनक सेन की ‘ऑल दैट ब्रीद्स’ को भी नॉमिनेशन मिला है, जबकि शॉर्ट तमिल डॉक्युमेंट्री ‘एलिफेंट विस्पर्स’ भी शीर्ष 15 शॉर्ट डॉक्युमेंट्री में शामिल है.
ऑस्कर अवॉर्ड सेरेमनी 12 मार्च, 2023 को लॉस एंजेलिस के डॉल्बी थिएटर में आयोजित किया जाएगा. इस साल ऑस्कर्स को टीवी एंकर और कॉमेडियन जिम्मी किमेल होस्ट करेंगे.