हिंदू समाज को एकजुट करने में वरिष्ठ स्वयंसेवक निभाएं नेतृत्व भूमिका: मोहन भागवत

अलीगढ़ (दीपक शर्मा) — राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि वरिष्ठ स्वयंसेवक संगठन की असली ताकत हैं, जिन्होंने जीवन पर्यंत सेवा, समर्पण और संगठन के मूल्यों को अपनाकर समाज में एक मिसाल कायम की है। उन्होंने अपील की कि संघ के शताब्दी वर्ष में हिंदू समाज को एकजुट करने की जिम्मेदारी वरिष्ठ कार्यकर्ता अपने कंधों पर लें ताकि संगठन के कार्यों को और अधिक गति दी जा सके।
44 वरिष्ठ स्वयंसेवकों से हुई संवादात्मक बैठक
डॉ. भागवत 20 अप्रैल को अलीगढ़ स्थित डॉ. शन्नोरानी सरस्वती कन्या महाविद्यालय में ब्रज प्रांत के 44 वरिष्ठ स्वयंसेवकों से संवाद कर रहे थे। इस बैठक में आगरा, मथुरा, एटा, बरेली, बदायूं, शाहजहांपुर, चंद्रनगर (फिरोजाबाद) और हरिगढ़ विभागों से प्रतिनिधित्व हुआ। बैठक में उपस्थित पांच कार्यकर्ता 80 वर्ष से अधिक उम्र के थे, जो आज भी संगठन के कार्यों में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।
शाखा है व्यक्ति निर्माण की प्रयोगशाला
संघ प्रमुख ने कहा कि शाखा व्यक्ति निर्माण का मूल केंद्र है। जितनी अधिक और प्रभावी शाखाएं होंगी, उतना ही संगठन सशक्त होगा। उन्होंने बताया कि शाखाओं के माध्यम से राष्ट्रभक्ति, अनुशासन और सेवा का संस्कार मिलता है, जो किसी भी समाज के निर्माण में सबसे आवश्यक तत्व होते हैं।
उन्होंने जोर देते हुए कहा कि संघ के शताब्दी वर्ष में सात बिंदुओं पर आधारित योजनाएं लागू की जा रही हैं, जिनमें प्रत्येक गांव, मंडल और बस्ती में विजयदशमी तक कार्यक्रम आयोजित करने का लक्ष्य है। इसका उद्देश्य हिंदू समाज को संगठित करना और हर घर तक संघ का विचार पहुंचाना है।
प्रत्येक बस्ती में हिंदू सम्मेलन, युवाओं पर विशेष फोकस
डॉ. भागवत ने सुझाव दिया कि गांव-गांव जाकर संपर्क किया जाए और घर-घर संघ का संदेश दिया जाए। साथ ही उन्होंने कहा कि समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों और बुद्धिजीवियों को जोड़ने के लिए गोष्ठियों और संगोष्ठियों का आयोजन आवश्यक है। विजयदशमी 2026 से पहले अधिकतम शाखाएं लगाई जाएं, और एक सप्ताह तक लगातार शाखा अभियान चलाया जाए।
उन्होंने युवा वर्ग को भी संघ से जोड़ने के लिए विशेष सम्मेलन आयोजित करने पर बल दिया। विद्यार्थी, खिलाड़ी, युवा उद्यमी और समाज में सक्रिय युवाओं को आमंत्रित कर राष्ट्र निर्माण में उनकी भूमिका तय की जानी चाहिए।
सामाजिक समरसता और आत्मचिंतन
संघ प्रमुख ने कहा कि सभी प्रकार के सामाजिक भेदभाव को समाप्त कर समरसता लाने के लिए ‘सामाजिक सद्भाव’ बैठकें आयोजित की जाएं। साथ ही शताब्दी वर्ष को उत्सव नहीं, बल्कि आत्मचिंतन और उद्देश्य के प्रति समर्पण का अवसर माना जाए। यह समय है उन स्वयंसेवकों को सम्मान देने का, जिन्होंने पिछले 100 वर्षों में संघ की नींव को मजबूत किया।
बैठक में प्रमुख पदाधिकारियों की भागीदारी
बैठक में क्षेत्र संघचालक सूर्य प्रकाश टोंक और प्रांत संघचालक शशांक भाटिया प्रमुख रूप से उपस्थित रहे। वरिष्ठ स्वयंसेवकों में प्रचारक, प्रांत प्रमुख, विभाग कार्यवाह, विद्या भारती, संस्कार भारती और भारतीय मजदूर संघ से जुड़े पदाधिकारी शामिल रहे।
हरिगढ़ से मथुरा तक सक्रिय वरिष्ठ स्वयंसेवक
हरिगढ़ से शामिल 9 वरिष्ठ स्वयंसेवकों में इंद्रमणि पाठक, राजाराम मित्र (84), गजेंद्र पाल शर्मा (86), ओमप्रकाश पचौरी आदि शामिल थे। मथुरा विभाग से 8 वरिष्ठ स्वयंसेवकों ने भाग लिया जिनमें विजय कौशल महाराज, अजय, कृष्ण कुमार कनोडिया जैसे पूर्व प्रचारक और प्रबुद्धजन मौजूद रहे।
आगरा विभाग से 8, बरेली से 8, एटा से 5, बदायूं से 2, शाहजहांपुर से 2 और चंद्रनगर विभाग से 3 वरिष्ठ स्वयंसेवक उपस्थित थे। इनमें अधिकांश प्रचारक, विभाग संघचालक, एबीवीपी व हिंदू जागरण मंच के पूर्व पदाधिकारी थे।
समाप्ति संदेश
संघ प्रमुख ने अंत में कहा कि राष्ट्र को परम वैभव पर पहुंचाने के लिए प्रत्येक स्वयंसेवक को निष्ठा, अनुशासन और सेवा भावना के साथ कार्य करना होगा। वरिष्ठ कार्यकर्ताओं का अनुभव और मार्गदर्शन युवा पीढ़ी को दिशा दिखाएगा और यही आत्मनिर्भर, संगठित और गौरवशाली भारत की नींव बनेगा।