4th December 2024

उत्तर प्रदेश

1971 की सियासी जंग: चुनावी समर में राजा ने चाचा को हराया और बन गए ‘यूपी टाइगर’, पढ़ें – रोचक किस्सा

गोंडा सीट से वर्ष 1971 में चाचा- भतीजे के सियासी जंग से रोमांचक चुनाव हुआ था। मनकापुर के राजा आनंद सिंह गोंडा व बलरामपुर की राजनीतिक धुरी माने जाते थे।

गोंडा ही नहीं बलरामपुर की राजनीति के भी धुरी माने जाने वाले मनकापुर रियासत के राजा आनंद सिंह ने वर्ष 1971 में सगे चाचा देवेंद्र प्रताप सिंह उर्फ लल्लन साहब को लोकसभा चुनाव में पराजित कर सियासत को नई दिशा दी। राजनीति में सब जायज है कि कहावत को चरितार्थ करने वाले राजा आनंद सिंह भले ही सियासी बनवास पर हैं, लेकिन चुनाव दौर में फिर चर्चा में हैं।

कांग्रेस 1971 के चुनाव में दो फाड़ हो गई थी। कांग्रेस सिंडिकेट से राजा आनंद सिंह गोंडा संसदीय सीट से मैदान में तो कांग्रेस इंडिकेट (आई) ने उनके चाचा और विधान परिषद के उपसभापति कुंवर देवेंद्र प्रताप सिंह उर्फ लल्लन साहब को प्रत्याशी बनाया। चुनाव बेहद रोमांचक रहा, चाचा-भतीजे की चुनावी जंग कड़े मुकाबले से गुजरी, जिसमें कुंवर आनंद सिंह ने जीत हासिल कर संसद में प्रवेश किया। इस चुनाव से न सिर्फ राजा आनंद सिंह का कद बढ़ा, बल्कि वह अपनी बेबाकी है, बेदाग छवि से यूपी टाइगर कहलाने लगे।

जिले की उतरौला विधानसभा के मतदाता गोंडा संसदीय सीट पर अपने सांसद का चुनाव करते हैं। उतरौला क्षेत्र में शुरुआत से ही राजा आनंद सिंह का दबदबा रहा। गोंडा संसदीय सीट से सांसद ही नहीं, देवीपाटन मंडल की राजनीति में भी दखल रखने वाले गोंडा के महाराजा आनंद सिंह के रोचक किस्से आज भी लोगों की जुबान पर हैं।

अब सियासत से दूर, बेटे ने संभाली राजनीतिक विरासत
वर्ष 2012 में गठित गौरा विधानसभा से विधायक बने और सपा सरकार में कृषि एवं धमार्थ कार्य मंत्री रहे। लेकिन 2017 से उनकी सियासी पारी थम गई और अब वह राजनीति में सक्रिय नहीं हैं। यह अलग बात है कि उनकी सियासी विरासत बेटे कीर्तिवर्धन सिंह उर्फ राजा भय्या ने 1998 में संभाल ली थी। पहली बार वह सपा से सांसद बने, साल 2014 से भाजपा में हैं और गोंडा के सांसद हैं। इस बार भी भाजपा से मैदान में हैं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also
Close