15th January 2025

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हाल ही में पद्मश्री पाने वाले दूदू(राजस्थान) के लक्ष्मण सिंह आखिर कौन है? करते क्या है? जानिए सब कुछ

पद्मश्री पाने वाले लक्ष्मण ने जल संरक्षण और शिक्षा के लिए वर्षों से जगाई अलख

राजस्थान जयपुर के पास ही दूदू (हाल ही में जिला घोषित ) के लापोड़िया गांव निवासी लक्ष्मण सिंह को पद्मश्री अवार्ड मिला है. उन्हें उनके सामाजिक कार्य के लिए अवार्ड मिला, वैसे लक्ष्मण सिंह राजस्थान में कोई नया नाम नहीं है. इनके नाम को लोग सम्मान से लेते हैं.

लापोडि़या गांव निवासी लक्ष्मण सिंह को पिछले 11 अक्टूबर को दिल्ली में लोकनायक जयप्रकाश अवार्ड से सम्मानित किया गया.पर्यावरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए दिया गया था. लक्ष्मण सिंह ने अपने जल संरक्षण के कार्यों की बदौलत लगभग 50 से अधिक गांवों की तकदीर और तस्वीर बदल दी है.इन्हें देश में जल संरक्षण के क्षेत्र में जाना जाता है. जयपुर से भले 80 किमी की दूरी इनका गांव है लेकिन इन्हें पूरे राजस्थान में जाना और पहचाना जाता है.जल संरक्षण और शिक्षा के लिए वर्षों से अलख जगाये रखी जिससे हजारों लोगों के जिंदगी की डगर बदल गई.

18 साल की उम्र में शुरू की सेवा

लापोड़िया गांव को लोग तब अच्छे से नहीं जानते थे जब लक्ष्मण सिंह 18 साल के थे. जल संकट और शिक्षा का अभाव था. उस दौरान लापोड़िया में लोग परेशान हुआ करते थे.लेकिन अपने 18 साल की उम्र में ही लक्ष्मण सिंह ने ठान लिया था कि उन्हें कुछ बड़ा करना है. भले ही उम्र छोटी थी लेकिन लक्ष्य बड़ा और कठिन था. 40 साल पहले अपने गांव की सूरत बदलने की कोशिश जब शुरू की थी.लक्ष्मण सिंह की उम्र अब 68 वर्ष है.लापोड़िया गांव की तस्वीर भी बदली और पढ़ाई की व्यवस्था भी. खुद लक्ष्मण सिंह ने पांचवीं कक्षा तक की पढ़ाई लापोड़िया में ही की है.उसके आगे की पढ़ाई के लिए गांव में लिए स्कूल नहीं था.जानकारी के अनुसार आगे की पढ़ाई के लिए लक्ष्मण सिंह अपने ननिहाल जयपुर आ गए.यहां रहकर पढ़ाई की लेकिन लापोड़िया के लिए काम  करने की इच्छा नहीं खत्म हुई उसे ज़िंदा रखा.

खुद के गांव से ही शुरुआत 

पढ़ाई के दौरान ही लक्ष्मण सिंह ने अपने गांव लापोड़िया को बदलने के लिए काम शुरू कर दिया था. 18 साल की उम्र में ही वो गांव में पानी की भारी किल्लत को दूर करने में लग गए थे.लोग पीने का पानी भरने के लिए कुओं में नीचे तक उतरते जाते थे, तब उन्हें पानी मिलता था.इसका असर मानव जीवन के साथ खेती पर भी खूब पड़ने लगा था.इसका बड़ा नुकसान लोगों को उठाना पड़ता था.इसलिए लोग लापोड़िया को छोड़कर शहर की तरफ रुख करना शुरू किया था. लक्ष्मण सिंह ने अपने गांव के पुराने तालाब को ठीक करने की शुरुआत की.उन्होंने खुद श्रमदान किया और तालाब की मरम्मत का काम शुरू किया. इतना ही नहीं उन्होंने काम को और तेज करने के लिए  ‘ग्राम विकास नवयुवक मंडल लापोड़िया’भी बनाया.तालाबों को ठीक करने के बाद लक्ष्मण सिंह ने अपनी संस्था के लोगों को दूसरे गांवों में भी लोगों को तालाब बनाने के लिए प्रेरित करने भेजा.कई गांव में स्कूल खुलवाया.आज वर्षों की मेहनत का फल लक्ष्मण सिंह को पद्मश्री के रूप में मिला.

 किसान लक्ष्मण सिंह को सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर पद्मश्री अवॉर्ड से नवाजा गया है। दुनिया को इजराइल खेती की तकनीक सिखाता है, लेकिन लक्ष्मण सिंह इजराइल को खेती की टेक्निक सिखाते हैं। जी हां, ऐसी ही शख्यिसत को पद्मश्री देकर राजस्थान और देश का मान ऊंचा किया गया है।

लक्ष्मण सिंह ने शुरूआत में गांव के पुराने तालाब की मरम्मत के लिए श्रमदान किया। गांव के लोग साथ जुड़ते गए और तालाब ठीक हो गया। अच्छी बरसात हुई और तालाब पानी से लबालब हो गया। तो गांव के लोगों को उनका काम और ज्ञान दोनों पर भरोसा हो गया। इसके बाद गांव के लोगों के साथ मिलकर आसपास के बहुत से गांवों में लक्ष्मण सिंह ने कई तालाब बना दिए। 

गोचर जमीन के लिए कड़ा संघर्ष किया
लक्ष्मण सिंह ने गोचर जमीन के विकास के लिए  भी कड़ा संघर्ष किया। कुछ गांवों की पंचायतों को लगा कि लक्ष्मण सिंह  गोचर की जमीन पर कब्जा करने की कोशिश में लगे हैं। लेकिन लक्ष्मण सिंह ने गोचर पर अवैध कब्जा रोकने और हटाने का अभियान चलाया, तो उलटे गोचर पर कब्जा करने वाले परेशान हो गए। 

तमाम सामाजिक और राजनीतिक प्रेशर के बावजूद इन्होंने गोचर जमीन को कब्जे से मुक्त कराया और उसका विकास किया। बाद में सरकार ने उनसे सहयोग मांगा और पाली जिले में उनकी संस्था को पंचायतों को गाइड करके जल संरक्षण और गोचर भूमि विकास का काम सिखाने के लिए नियुक्त किया गया। इस तरह से उनके काम को राज्य सरकारी मान्यता भी मिल गई।

जयपुर से 80 किलोमीटर दूर लापोड़िया के किसान और सामाजिक कार्यकर्ता लक्ष्मण सिंह ने तीन कामों पर फोकस करके गांवों की दशा सुधारने का काम किया। पहला-जल संरक्षण, दूसरा-पौधरोपण और तीसरा-स्कूल बनाना। लक्ष्मण सिंह ने आज से करीब 40 साल पहले अपने गांव की सूरत बदलने की कोशिश शुरू की थी। करीब 66 साल के लक्ष्मण सिंह ने 5वीं कक्षा तक की पढ़ाई अपने लापोड़िया गांव से ही की। फिर अपने ननिहाल जयपुर में आकर दसवीं तक पढ़ाई की। 

दसवीं की पढ़ाई के दौरान एक बार अपने गांव आए, तब उम्र करीब 18 साल रही थी।  गांव की हालत देखकर लक्ष्मण सिंह को बहुत अफसोस हुआ, क्योंकि गांव में पानी की भयंकर किल्लत हो गई थी। लोगों को पीने का पानी भरने के लिए कुओं में नीचे तक उतरना पड़ रहा था। पानी की कमी से खेती-बाड़ी भी बर्बाद हो रही थी। लोग मजदूरी करने शहरों की तरफ भाग रहे थे। ऐसे हालातों ने इन्हें कुछ करने के लिए प्रेरित किया। 10वीं की पढ़ाई बीच में ही छोड़कर इन्हें गांव की तकदीर बदलने की ठानी।

लक्ष्मण सिंह ने शुरूआत में गांव के पुराने तालाब की मरम्मत के लिए श्रमदान किया। गांव के लोग साथ जुड़ते गए और तालाब ठीक हो गया। अच्छी बरसात हुई और तालाब पानी से लबालब हो गया। तो गांव के लोगों को उनका काम और ज्ञान दोनों पर भरोसा हो गया। इसके बाद गांव के लोगों के साथ मिलकर आसपास के बहुत से गांवों में लक्ष्मण सिंह ने कई तालाब बना दिए। 

अपने गांव के युवकों को संगठित करने के लिए ‘ग्राम विकास नवयुवक मंडल लापोड़िया’ भी बनाया। जिसके 80 सदस्य गांव में तालाब बनाने के काम में स्वयंसेवा करते थे। लक्ष्मण सिंह ने अपनी संस्था के लोगों को दूसरे गांवों में भी लोगों को तालाब बनाने के लिए प्रेरित करने भेजा।

50 गांवों में स्कूल खोलकर शिक्षा का माहौल बनाया
लक्ष्मण सिंह गांवों में स्कूल चलाने का अभियान चलाया। इसके तहत जिन गांवों में स्कूल नहीं थे, वहां स्कूल खोले गए और सभी पढ़े-लिखे लोगों को रोस्टर के आधार पर पढ़ाने की ड्यूटी पर भेजा गया। इस तरह धीरे-धीरे लक्ष्मण सिंह ने करीब 50 गांवों में स्कूल खोले और खुलवाए। गांवों में लोगों की नियमित बैठकें करना शुरू किया। जिसमें विकास की बातें होती थीं। तालाब बनाने, गोचर जमीन सुधार, स्कूलों में बच्चों को भेजने पर जोर दिया गया। 

स्कूलों में लिखवाया गया-‘यह न सरकारी स्कूल है, न प्राइवेट स्कूल है, यह गांव का स्कूल है। इस स्कूल में कोई फीस नहीं ली जाती और बच्चे हों या बुजुर्ग, यहां पर सभी लोग पढ़ सकते हैं।’ लक्ष्मण सिंह ने 1980 से 2006 तक इन स्कूलों को चलाया। 2006 के बाद सरकार ने जब हर गांव में स्कूल खोल दिए, तो लक्ष्मण सिंह ने अपनी संस्था की मदद से चलाए जा रहे गांव के स्कूल बंद करवा दिए।

चौका सिस्टम का विकास
गोचर विकास के लिए लक्ष्मण सिंह ने चौका सिस्टम ईजाद किया। जो आज पूरी दुनिया में एक मिसाल है। उन्होंने अपने गांव की 400 बीघा गोचर जमीन पर बारिश में व्यर्थ बह जाने वाले पानी को रोकने के लिए काम किया। उन्हें गांव के ही कालू दादा नामक व्यक्ति ने रास्ता दिखाया। पहले गोचर जमीन पर ज्यादा पानी नहीं रुकता था और वह ओवर फ्लो होकर आगे छोटे तालाब में चला जाता था। इससे वहां घास और पेड़-पौधे उगते रहते थे। 

गोचर की जमीन में केवल 9 इंच पानी रोकने और बाकी पानी को आगे तालाब में भेजने पर उन्होंने चौका टेक्नीक का सिस्टम ईजाद किया। इसमें जमीन पर तीन तरफ से मेड़ बना दी जाती है और उसमें छोटे-छोटे गड्ढे खोद दिए जाते हैं। पहली बरसात के बाद इस पूरे इलाके में देसी घास और खेजड़ी, देसी बबूल जैसे पौधों के बीज छिड़ककर हल से जुताई कर दी जाती है। इससे 400-500 एकड़ के इलाके में घास और पौधे उग जाते हैं। गांव वाले दो महीने तक इसमें अपने पशु नहीं भेजते हैं। जब घास और पौधे 2 फीट की लंबाई के हो जाते हैं तो इसमें पशुओं को भेजा जाता है। इस तरह केवल 5 साल में जंगल तैयार हो जाता है।

चौका तकनीक सिखाने के लिए बुलाए गए इजरायल
अंतरराष्ट्रीय संस्था सीआरएस (CRS) ने जब चौका टेक्नीक को देखा तो उसने इसके कई फायदों और इकोसिस्टम की बैलेंसिंग पर समझ विकसित की। यह जल संरक्षण करता है और साथ ही बिना कोशिश के लाखों पेड़ उगा देता है। उन्होंने इसकी स्टडी कर अफगानिस्तान और इजरायल में इसको लागू करने की सिफारिश की। चौका सिस्टम की तकनीक बताने के लिए लक्ष्मण सिंह 2008 में इजरायल भी गए, लेकिन अफगानिस्तान नहीं गए। इसके बाद अफगानिस्तान से 40 सदस्यों की एक टीम उनके पास आई और उनके काम को सीखकर अफगानिस्तान में कुछ जगह इम्प्लीमेंट भी किया।

गो पालन से हर परिवार की बढ़ी कमाई
गांव में गोचर की बंजर पड़ी जमीन के उपयोग से लक्ष्मण सिंह ने गो पालन का एक ऐसा काम शुरू किया, जिससे उनके मॉडल को अपनाने वाले हर गांव में हर परिवार को आज कम से कम 40 से 50 रुपये की आमदनी केवल दूध से होती है। लक्ष्मण सिंह ने गुजरात से गिर नस्ल के सांड लाकर भी कई गांवों में छोड़े। जिससे गायों की नस्ल सुधार का काम शुरू हुआ और आज यह पूरा इलाका गिर गायों का एक बड़ा केंद्र बन गया है।

100 गांव हरे भरे किए
लक्ष्मण सिंह ने राजस्थान के करीब 100 गांवों को हरा-भरा कर दिया। ‘चोका सिस्टम’ की शुरूआत करने वाले गांव में किसान हर घर में सिर्फ दूध के कारोबार से प्रतिमाह 10 से 50 हजार रुपए तक कमा रहे हैं। उनके गांव लापोड़िया में 350 घर हैं, जिसकी आबादी करीब 2000 लोगों की है। यहां पानी की समस्या काफी हद तक कम हुई है। किसान साल में कई फसलें उगाते हैं। पशुपालन करते हैं। और पैसा कमाते हैं।  स्थानीय भाषा में लापोड़ को फेंकने वाला या पागल भी कहा जाता है, लेकिन लक्ष्मण सिंह गांव के नाम पर इस तरह के कलंक को कब का मिटा चुके हैं। 

आज उनका गांव समझदार किसानों का गांव कहलाता है। जयपुर और टोंक जिले के 58 गांव लापोड़िया गांव जैसे बन चुके हैं। लक्ष्मण सिंह को उनके सराहनीय कार्यों के लिए वर्ष 1992 में नेशनल यूथ अवार्ड और 2007 में जल संरक्षण के अनोखे तरीके को इजाद करने के लिए राष्ट्रपति अवार्ड से सम्मानित किया गया था। उनके यहां तीन बड़े सार्वजनिक तालाब हैं, जिसका पानी पूरे गांव के लोग इस्तेमाल करते हैं। 

देवसागर और फूलसागर नाम के दो ऐसे तालाब जिसका पानी पशु-पक्षी पीते हैं और भूजल स्तर रिचार्ज होता है,एक तालाब के पानी से 1400 बीघा जमीन सिंचित होती है। इन तीन सार्वजनिक बड़े तालाबों के अलावा 5 से 10 किसानों के बीच एक सामूहिक तालाब जरुर होता है। 

10 सार्वजनिक नालियां हैं, जहां जानवर चरते हैं वहीं उनके पीने के पानी का इंतजाम किया गया है। इन तालाब और नालियों में कोई भी कूड़ा नहीं फेक सकता है। पूरे गांव में 103 कुएं भी हैं, यहां वृक्षों की ज्यादातर सभी प्रजातियां मिल जाएंगी। मवेशियों की अच्छी नस्ल होने की वजह से 3 से 4 हजार लीटर दूध रोजाना डेयरी पर जाता है।

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